हमे तुम याद करना 

सामान्य

​फिर वही रात वही ग़म वही तन्हाई है…..
हमारे बाल ज्यादा लम्बे कैसे भला ..तुम जोर से खीच कर भाग जाते ..ऐसे …हमारे दोनों कंधो पर तेज कसे फिते के फूल सा मुस्कराते हो तुम ..तुम्हारे खुश रहने के लिए रोटी में ज्यादा देशी घी लगाया गया हमेशा ..अम्मा के सारे गहने तुम्हारी दुल्हन के लिए सुरक्छित ..
हाँ हमारे पास भी है बहुत कुछ …छुपा कर रखी तुम्हारी दी वो डेढ़ सौ रुपयेकी चौकोर दिवार घडी …जिस दिवार पर टगी है पिछले तमाम सालों से अपने टिक टिक से मेरे घर को धडकाती रहती है ..हमारी थाली में गुड चना हल्दी दही और अक्षत का शगुन है ..समय समय पर हम ये तुम्हारी ओर कर देते हैं ..इसे भर दिया करो ..अपने साथ होने के यकीन से .हमे बार बार इस त्यौहार उस त्यौहार पर बुला लेने के अनुरोध से ..सावन में मायके का झूला की कसमे खिला कर ..
हमारी खाली थालियों में लाख लाख टके के जेवर झिलमिला जायेंगे ….वरना खाली थालियों की चम् चम् में हमारी जोड़ी भर भरी आँखें तैर जाएँगी ..
तुम्हारे बिना भाई ..जिंदगी डोली के एक कोने पर गठरी सी सिसकियाँ है जिसे गाँव की सत्ती माता समझती हैं वहीँ से अलग हुए थे ना तुम हमसे ..
डोली से पर्दा उठा कर आखिरी बार झाकती हमारी सूनी आँखें ..पगडण्डी पर घुटनों में सर छुपाये तुम …ये भाई पागल होते हैं या बहनें चुड़ैल …………पीछा ही नही छोड़ती .
देखा फिर खीच दी ना तुमने हमारी चोटी???

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